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‘खालिस्तानियों की कनाडा में गहरी पैठ, ट्रूडो ने ध्वस्त किए संबंध’: कनाडा छोड़ने से पहले भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा का खुलासा

कनाडा में खालिस्तान समर्थक गतिविधियों के बढ़ते प्रभाव और भारत-कनाडा संबंधों में आई दरार पर भारतीय उच्चायुक्त संजय वर्मा ने एक विशेष इंटरव्यू में कई अहम बातें साझा कीं। कनाडा छोड़ने से पहले दिए गए इस इंटरव्यू में वर्मा ने प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के नेतृत्व में संबंधों में आई गिरावट और खालिस्तानी संगठनों की कनाडा में गहरी पैठ पर खुलकर बात की।

खालिस्तानी प्रभाव और सुरक्षा चिंताएं

संजय वर्मा ने कहा कि खालिस्तान समर्थक तत्वों की कनाडा में जड़ें बहुत गहरी हो चुकी हैं, और यह भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कनाडा की जमीन का इस्तेमाल भारत-विरोधी गतिविधियों के लिए किया जा रहा है, और यह सिर्फ भारत-कनाडा संबंधों को नुकसान नहीं पहुंचा रहा, बल्कि कनाडा की आंतरिक सुरक्षा के लिए भी चिंता का विषय बन चुका है।

ट्रूडो सरकार की भूमिका पर सवाल

संजय वर्मा ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की सरकार ने खालिस्तानी समर्थक समूहों के प्रति नरमी दिखाई है, जिसने दोनों देशों के बीच संबंधों को और बिगाड़ा है। उन्होंने बताया कि ट्रूडो सरकार के तहत इन संगठनों को खुला समर्थन और मंच मिला, जो कि भारत के लिए अस्वीकार्य है। वर्मा के अनुसार, यह स्थिति तब और गंभीर हो गई जब खालिस्तान समर्थकों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों में वृद्धि हुई, और ट्रूडो सरकार ने उस पर कठोर कदम उठाने से परहेज किया।

संबंधों का ध्वस्त होना

भारत और कनाडा के रिश्तों में हालिया घटनाओं ने एक गहरी खाई पैदा कर दी है। वर्मा ने कहा कि ट्रूडो सरकार की ओर से खालिस्तानी समर्थकों के प्रति नरम रुख अपनाने और भारत पर आरोप लगाने से हालात बिगड़ते गए। “ट्रूडो ने दोनों देशों के दशकों पुराने संबंधों को ध्वस्त करने का काम किया है,” वर्मा ने कहा। उन्होंने यह भी बताया कि कई बार कूटनीतिक प्रयास किए गए, लेकिन उनका कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला।

भारत की कड़ी प्रतिक्रिया

संजय वर्मा ने इस बात पर जोर दिया कि भारत ने हमेशा कनाडा के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की कोशिश की है, लेकिन खालिस्तानी गतिविधियों के प्रति कनाडा का रुख भारत के लिए चिंताजनक है। वर्मा ने बताया कि भारत ने अपनी चिंताओं को लगातार कनाडा के सामने रखा, लेकिन ट्रूडो सरकार ने इन मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया।

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