गोडसे को लगा था लोग नफरत करेंगे, लेकिन उल्टा होने लगा! फांसी के 75 वर्ष बाद क्या बदल चुका?
30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को 15 नवंबर 1949 को फांसी दी गई थी। उस वक्त गोडसे का मानना था कि गांधी की हत्या के बाद लोग उसे हमेशा के लिए एक क्रूर हत्यारे के रूप में याद करेंगे। लेकिन आज, फांसी के 75 वर्षों के बाद, भारतीय समाज में गोडसे को लेकर धारणाएँ तेजी से बदल रही हैं। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?
गोडसे का नज़रिया और उसके तर्क
नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या के पीछे कई कारण गिनाए थे। गोडसे का कहना था कि गांधी की नीतियाँ, विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के प्रति उनके समर्थन, ने देश के विभाजन और हिंदू समाज के हितों के खिलाफ काम किया। गोडसे के अनुसार, गांधी ने पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये देने की वकालत करके देश के प्रति विश्वासघात किया था।
हालाँकि, फांसी के समय गोडसे ने उम्मीद की थी कि उसके इस कृत्य के लिए लोग उसे कभी माफ़ नहीं करेंगे और उसे एक दुश्मन की तरह देखेंगे। लेकिन समय के साथ परिस्थितियाँ बदलती गईं।
75 साल बाद क्यों बदल रही है सोच?
आज, गोडसे को लेकर समाज में दो ध्रुव बन चुके हैं। एक तरफ लोग गांधीजी को “राष्ट्रपिता” मानते हैं, तो दूसरी तरफ कुछ लोग गोडसे को “राष्ट्रवादी” के रूप में देखने लगे हैं।
1. सामाजिक और राजनीतिक ध्रुवीकरण:
बीते कुछ दशकों में भारत में राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ा है। कुछ राजनीतिक दल और संगठनों ने गोडसे को “देशभक्त” के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है। यह बदलाव खासकर सोशल मीडिया और नई पीढ़ी के बीच देखा जा सकता है। कई लोग यह मानने लगे हैं कि गोडसे का कदम देशहित में था, भले ही उसकी विचारधारा विवादास्पद रही हो।
2. सोशल मीडिया का प्रभाव:
सोशल मीडिया के दौर में गोडसे की विचारधारा के पक्ष में कई अभियान चलाए जा रहे हैं। युवा वर्ग में गोडसे के प्रति सहानुभूति बढ़ी है। इन प्लेटफार्म्स पर उसके विचारों और तर्कों को दोबारा प्रस्तुत किया जा रहा है, जिससे एक नई पीढ़ी का नजरिया गोडसे के प्रति बदलने लगा है।
3. फिल्में और साहित्य का योगदान:
गोडसे पर आधारित कई किताबें, नाटक, और हाल ही में फिल्में भी बनाई गई हैं, जिनमें उसे एक “देशभक्त” के रूप में दिखाया गया है। इन माध्यमों के जरिए उसकी विचारधारा को सही ठहराने की कोशिश की जा रही है।
गोडसे के प्रति बदलती सोच का असर
गोडसे के प्रति बदलते नजरिए का असर केवल समाज तक सीमित नहीं है। इसे राजनीति में भी देखा जा सकता है। कुछ राज्यों में गोडसे की प्रतिमाएँ स्थापित करने की मांग उठी है। वहीं, उसकी पुण्यतिथि और जयंती पर आयोजन भी होने लगे हैं।
लेकिन यह बदलाव हर किसी को पसंद नहीं आ रहा है। कई लोगों का मानना है कि गोडसे का महिमामंडन गांधी के सिद्धांतों और उनके बलिदान का अपमान है। वे कहते हैं कि यह प्रवृत्ति समाज को बांटने और नफरत फैलाने का काम कर रही है।