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जस्टिस सबरवाल नहीं होते तो कभी जज ही नहीं बनते चंद्रचूड़, रिटायरमेंट पर खुद बताया वो किस्सा

भारत के वर्तमान मुख्य न्यायधीश (CJI) डी. वाई. चंद्रचूड़ ने अपने रिटायरमेंट के अवसर पर एक दिलचस्प और प्रेरणादायक किस्सा साझा किया। उन्होंने बताया कि अगर जस्टिस सबरवाल का मार्गदर्शन न होता, तो शायद वह कभी भी जज नहीं बन पाते। चंद्रचूड़ ने यह भी कहा कि जस्टिस सबरवाल के आशीर्वाद और दिशा-निर्देशों के कारण ही उन्होंने अपने करियर में सफलता पाई और न्यायपालिका की दुनिया में कदम रखा।

जस्टिस सबरवाल का महत्वपूर्ण योगदान

चंद्रचूड़ ने बताया कि वह एक जज बनने के लिए संघर्ष कर रहे थे, और उस समय जस्टिस सबरवाल ने उन्हें एक अवसर दिया, जिससे उनकी ज़िंदगी और करियर की दिशा बदल गई। चंद्रचूड़ ने याद किया कि जस्टिस सबरवाल ने हमेशा उन्हें प्रेरित किया, उन्हें अपने काम पर विश्वास दिलाया और कभी भी मुश्किल परिस्थितियों में हार मानने का विचार नहीं करने दिया।

चंद्रचूड़ के अनुसार, अगर जस्टिस सबरवाल का समर्थन और मार्गदर्शन न मिलता, तो शायद वह कभी भी अदालत में महत्वपूर्ण पद तक नहीं पहुंच पाते। उन्होंने जस्टिस सबरवाल के योगदान को उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ बताया और कहा कि वह हमेशा उनके ऋणी रहेंगे।

रिटायरमेंट के बाद का संदेश

रिटायरमेंट के दौरान चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका और सभी युवा वकीलों को एक संदेश दिया। उन्होंने कहा, “न्यायपालिका में आने के बाद मैंने हमेशा यह महसूस किया कि न्याय का काम केवल कानून का पालन करना नहीं है, बल्कि यह समझने की भी जरूरत है कि समाज को सही न्याय कैसे मिले।”

उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें गर्व है कि वह भारत की न्यायपालिका का हिस्सा बने और कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे। चंद्रचूड़ ने इस अवसर पर अपने काम को संतुष्टि की भावना के साथ देखा और कहा कि हर फैसला एक नई चुनौती की तरह होता है, लेकिन जब यह फैसला समाज के हित में होता है, तो आत्मसंतुष्टि मिलती है।

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