ट्रंप की जीत से कनाडा में जस्टिन ट्रूडो की क्यों बढ़ सकती हैं चुनौतियां? रिपब्लिकन नेता ने कभी कहा था ‘वामपंथी पागल’
डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी बार अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में वापसी कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के लिए नई चुनौतियाँ पैदा कर सकती हैं। ट्रंप के कट्टर रिपब्लिकन विचारों और उग्र वामपंथी आलोचना के मद्देनज़र, ट्रूडो के लिए अब अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर और ज्यादा दबाव हो सकता है।
ट्रंप और ट्रूडो के रिश्ते में तनाव
डोनाल्ड ट्रंप और जस्टिन ट्रूडो के रिश्ते पहले से ही तनावपूर्ण रहे हैं। ट्रंप ने एक बार जस्टिन ट्रूडो को सार्वजनिक तौर पर “वामपंथी पागल” तक कह दिया था, जब ट्रूडो ने ट्रंप की कुछ नीतियों की आलोचना की थी। ट्रंप ने यह टिप्पणी तब की थी जब ट्रूडो ने अमेरिका की वाणिज्यिक नीतियों और पेरिस जलवायु समझौते से ट्रंप के हटने पर विरोध किया था। ट्रंप की वापसी से अब यह राजनीतिक तनाव और भी बढ़ सकता है।
कनाडा के लिए क्या मायने रखेगी ट्रंप की जीत?
- व्यापार संबंधों में बदलाव: ट्रंप की नीति में अमेरिका फर्स्ट के सिद्धांत को प्राथमिकता दी जाती है। इसका मतलब है कि कनाडा को नए व्यापार समझौतों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, खासकर जब वह नॉर्थ अमेरिकन फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (NAFTA) के नई व्यवस्था (USMCA) के तहत अपने हितों की रक्षा कर रहा है।
- पर्यावरण और जलवायु नीति: ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को बाहर कर दिया था। इस फैसले के बाद ट्रूडो ने जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अलग रुख अपनाया। ट्रंप की वापसी के साथ, कनाडा को अपनी पर्यावरण नीति में और सख्त संघर्षों का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि ट्रंप के विचार कठोर हो सकते हैं और ट्रूडो के वामपंथी दृष्टिकोण से टकरा सकते हैं।
- आंतरिक राजनीति पर प्रभाव: ट्रंप की वापसी से कनाडा में कंजरवेटिव पार्टी को भी फायदा हो सकता है। यदि ट्रंप के विचारों का प्रभाव बढ़ता है, तो यह कनाडा की कंजरवेटिव पार्टी को वामपंथी ट्रूडो सरकार के खिलाफ उकसाने का मौका दे सकता है, जिससे आंतरिक राजनीति में उथल-पुथल हो सकती है।
जस्टिन ट्रूडो की चुनौतियां
यदि ट्रंप सत्ता में लौटते हैं, तो जस्टिन ट्रूडो को अमेरिका के साथ संबंधों को पुनः स्थापित करने और जटिल कूटनीतिक संकटों का सामना करने की आवश्यकता हो सकती है। इसके अलावा, ट्रूडो सरकार को अपनी आर्थिक नीतियों को पुनः सामंजस्यपूर्ण तरीके से लागू करने की चुनौती भी सामने आएगी।