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तालिबान को मान्यता नहीं फिर भी संयुक्त राष्ट्र की मेज़बानी वाली बैठक में हुआ शामिल, जानें कैसे मिली एंट्री

तालिबान को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, लेकिन हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (UN) की मेज़बानी में हुई एक महत्वपूर्ण बैठक में तालिबान प्रतिनिधि ने भाग लिया। यह घटनाक्रम वैश्विक कूटनीति में एक नई मोड़ को दर्शाता है और सवाल उठाता है कि आखिर तालिबान को किस तरीके से इस बैठक में एंट्री मिली, जबकि यह संगठन अभी भी दुनिया के कई देशों के लिए प्रतिबंधित और अस्वीकार्य है।

संयुक्त राष्ट्र की बैठक में तालिबान की एंट्री

संयुक्त राष्ट्र की मेज़बानी में होने वाली इस बैठक में तालिबान के प्रतिनिधि को उस वक्त एंट्री मिली जब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के कुछ प्रमुख सदस्य देशों ने इसे “अस्थायी स्थिति” के रूप में स्वीकार किया। विशेष रूप से यह बैठक अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण और मानवीय सहायता पर केंद्रित थी, जहां तालिबान को मानवीय सहायता और शांति प्रक्रिया पर चर्चा में शामिल होने का मौका दिया गया।

तालिबान ने बैठक में अपनी पारदर्शिता और आत्मनिर्भरता का दावा किया और यह सुनिश्चित करने का वादा किया कि अफगानिस्तान में मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं होगा, हालांकि, दुनियाभर में इसके मानवाधिकार रिकॉर्ड पर सवाल खड़े हैं।

कैसे मिली एंट्री?

तालिबान की एंट्री के लिए जो मार्ग प्रशस्त हुआ, वह संयुक्त राष्ट्र के एक विशेष निर्णय प्रक्रिया के माध्यम से था। सामान्य तौर पर, संयुक्त राष्ट्र में किसी भी सरकार या संगठन को अधिकारिक रूप से मान्यता मिलनी चाहिए, लेकिन तालिबान के मामले में यह प्रक्रिया असामान्य थी। अफगानिस्तान में तालिबान शासन के पुनर्निर्माण में कुछ सहयोग देने के उद्देश्य से, संयुक्त राष्ट्र ने विशेष परिस्थितियों में तालिबान को इस बैठक में परामर्शदाता के रूप में शामिल किया।

तालिबान के प्रतिनिधि ने संयुक्त राष्ट्र के एक मंच पर बैठकर अपनी बात रखी, हालांकि यह शर्त थी कि तालिबान को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता नहीं दी जाएगी। इस बीच, कुछ देशों ने अफगानिस्तान की वर्तमान सरकार के नेतृत्व को स्वीकार करने से इंकार किया, जबकि अन्य देशों ने इसे “अस्थायी समाधान” के रूप में स्वीकार किया और अफगान जनता के लिए आवश्यक मानवीय सहायता के मुद्दे पर विचार किया।

तालिबान का अंतर्राष्ट्रीय परिपेक्ष्य

तालिबान के इस कदम को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में एक संवेदनशील और पेचीदा स्थिति के रूप में देखा जा रहा है। यह संगठन न केवल अफगानिस्तान में सत्ता में है, बल्कि उसकी सांस्कृतिक, धार्मिक, और राजनीतिक नीतियाँ दुनिया के कई हिस्सों में विवादास्पद हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसे मंच पर तालिबान की उपस्थिति उस अंतरराष्ट्रीय दबाव का संकेत है, जिसके तहत अफगानिस्तान में मानवीय सहायता और विकास को लेकर गंभीर विचार-विमर्श किया जा रहा है।

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