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नेहरू पर हुए हत्या के प्रयास: कई बार जानलेवा हमलों से बाल-बाल बचे थे देश के पहले प्रधानमंत्री

भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का कार्यकाल ऐतिहासिक उपलब्धियों और चुनौतियों से भरा हुआ था, लेकिन इसके साथ ही उन्हें कई बार जानलेवा हमलों का सामना भी करना पड़ा। नेहरू की विचारधारा, उनकी नीतियों और समाजवादी दृष्टिकोण के चलते वे कई कट्टरपंथी संगठनों और असंतुष्ट समूहों के निशाने पर रहे। इन समूहों के विरोध का स्वरूप इतना हिंसक हो गया था कि नेहरू पर उनके कार्यकाल के दौरान कई बार जानलेवा हमले किए गए, लेकिन हर बार वे किस्मत और सुरक्षा बलों की तत्परता के कारण बच निकले।

1947 में, भारत को स्वतंत्रता मिलने के कुछ समय बाद ही नेहरू पर पहला हमला हुआ। दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान कुछ असंतुष्ट तत्वों ने उन पर हमला करने की कोशिश की। इस घटना में नेहरू को हल्की चोट आई, लेकिन उनकी जान बच गई। इसके बाद 1955 में लखनऊ में एक सार्वजनिक सभा को संबोधित करते समय नेहरू पर बम फेंका गया। यह बम मंच के पास ही गिरा, लेकिन नेहरू को कोई गंभीर चोट नहीं लगी। इस घटना के बाद उनकी सुरक्षा को कड़ा कर दिया गया था।

1961 में महाराष्ट्र के नागपुर में नेहरू पर एक और जानलेवा हमला हुआ, जब एक व्यक्ति ने उन पर चाकू से हमला करने की कोशिश की। हमलावर मंच के पास पहुँच गया था, लेकिन सुरक्षा बलों की तत्परता से हमले को विफल कर दिया गया और नेहरू को किसी प्रकार की चोट नहीं आई। इसके अतिरिक्त, हिंदू महासभा जैसे कुछ कट्टरपंथी समूहों से नेहरू को कई बार गंभीर धमकियाँ भी मिलीं, जो उनकी धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी नीतियों से असहमत थे।

इन घटनाओं के बाद नेहरू की सुरक्षा को लेकर सरकार ने अधिक सख्ती बरतनी शुरू की। उनके कार्यक्रमों में अतिरिक्त सुरक्षा बलों को तैनात किया गया और उनकी सुरक्षा व्यवस्था को अत्यधिक सुदृढ़ बनाया गया। इसके बावजूद नेहरू ने अपने विचारों और समाज सेवा के प्रति संकल्प को बनाए रखा और जनता के बीच आने-जाने से परहेज नहीं किया। इन जानलेवा हमलों के बावजूद नेहरू की जान बचती रही, लेकिन इन घटनाओं ने भारतीय राजनीति में उभर रही असहिष्णुता की ओर भी इशारा किया।

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