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‘बुलडोजर जस्टिस मंजूर नहीं’, सुप्रीम कोर्ट बोला- किसी भी संपत्ति को ढहाने से पहले उठाए जाएं ये 6 कदम

भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि किसी भी अवैध निर्माण या संपत्ति को बुलडोजर से ढहाने से पहले कानून के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि “बुलडोजर जस्टिस” को मंजूरी नहीं दी जा सकती है और किसी भी प्रकार की संपत्ति को ढहाने से पहले छह अहम कदम उठाए जाने चाहिए। यह आदेश उन मामलों में दिया गया, जहां राज्य सरकारों और नगर निगमों द्वारा बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के अवैध निर्माणों को तोड़ा गया था।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश और दिशा-निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि किसी भी संपत्ति को ढहाने से पहले निम्नलिखित छह कदम उठाए जाने चाहिए:

  1. स्थानीय निकायों से नोटिस जारी करना: किसी भी संपत्ति को ढहाने से पहले, संबंधित स्थानीय निकाय (जैसे नगर निगम, पंचायत) द्वारा नोटिस जारी किया जाना चाहिए, जिसमें निर्माण के अवैध होने के बारे में बताया जाए और तोड़ने का आदेश दिया जाए।
  2. सुनवाई का अवसर देना: नोटिस मिलने के बाद संबंधित व्यक्ति या संस्था को अपनी सुनवाई का मौका दिया जाए, ताकि वे अपनी स्थिति प्रस्तुत कर सकें।
  3. सप्लीमेंट्री नोटिस देना: यदि आवेदक का जवाब संतोषजनक नहीं होता है, तो एक सप्लीमेंट्री नोटिस जारी किया जाए, जिसमें निर्माण के अवैध होने का ठोस कारण बताया जाए।
  4. संसाधनों की उचित जांच: अवैध निर्माण को ढहाने से पहले, यह सुनिश्चित किया जाए कि कोई वैध वैकल्पिक उपाय मौजूद न हो, जैसे कि निर्माण को कानूनी रूप से नियमित करना।
  5. न्यायिक आदेश की प्राप्ति: संपत्ति ढहाने से पहले संबंधित न्यायालय से आदेश प्राप्त करना अनिवार्य होगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कार्रवाई कानून के अनुरूप हो रही है।
  6. अंतिम नोटिस और समय सीमा: संपत्ति मालिक को अंतिम नोटिस देने के बाद ही कार्रवाई की जाए, जिसमें एक निर्धारित समय सीमा दी जाए ताकि वे अपने अधिकारों का बचाव कर सकें।

कोर्ट का रुख और चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए, किसी भी संपत्ति को ढहाना संविधान और नागरिक अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, और “बुलडोजर जस्टिस” का तरीका न्यायसंगत नहीं है।

कोर्ट ने राज्य सरकारों से यह भी आग्रह किया कि वे अवैध निर्माण के खिलाफ कार्रवाई करते समय इन कदमों का पालन करें और सुनिश्चित करें कि कोई भी नागरिक बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के अपनी संपत्ति से वंचित न हो।

सर्वोच्च न्यायालय का महत्व
यह फैसला उन कई मामलों से जुड़ा है, जहां राज्य और स्थानीय प्रशासन ने बिना उचित कानूनी प्रक्रियाओं के अवैध निर्माणों को ध्वस्त कर दिया। इस आदेश के बाद, यह उम्मीद की जा रही है कि ऐसे मामलों में अनुशासन और पारदर्शिता बढ़ेगी। इससे यह सुनिश्चित होगा कि गरीब और वंचित वर्गों के खिलाफ किसी भी प्रकार की मनमानी कार्रवाई नहीं हो, और हर किसी को न्यायिक प्रक्रिया का पूरा अधिकार मिलेगा।

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