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मानवाधिकार दिवस: राज्यसभा सभापति का संबोधन, न्याय और समानता पर दिया जोर

मानवाधिकार दिवस के अवसर पर राज्यसभा के सभापति ने सदन को संबोधित करते हुए मानवाधिकारों के महत्व पर प्रकाश डाला। सभापति ने कहा कि मानवाधिकार किसी भी लोकतांत्रिक समाज की आधारशिला हैं, जो न्याय, समानता और स्वतंत्रता की गारंटी देते हैं।

मानवाधिकारों का महत्व

सभापति ने कहा, “मानवाधिकार हर व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है। यह हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों में शामिल है, जो हर नागरिक को समान अवसर और गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मानवाधिकारों की रक्षा से ही एक मजबूत और समतामूलक समाज का निर्माण संभव है।

लोकतंत्र और मानवाधिकार

सभापति ने लोकतंत्र और मानवाधिकारों के बीच के गहरे संबंध को रेखांकित करते हुए कहा कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था का असली उद्देश्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें सशक्त बनाना है। उन्होंने कहा, “हमारा संविधान मानवाधिकारों का सबसे बड़ा संरक्षक है, जो न्याय, स्वतंत्रता और समानता का आदर्श प्रस्तुत करता है।”

सामाजिक न्याय और जागरूकता

सभापति ने सभी नागरिकों से मानवाधिकारों के प्रति जागरूक बनने और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करने की अपील की। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की रक्षा केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह समाज के हर व्यक्ति का कर्तव्य है।

मानवाधिकार दिवस का संदेश

सभापति ने इस अवसर पर युवाओं को मानवाधिकारों की रक्षा के लिए आगे आने का आह्वान किया। उन्होंने कहा, “युवाओं को शिक्षा, जागरूकता और तकनीकी ज्ञान के माध्यम से मानवाधिकारों की रक्षा और प्रचार-प्रसार में भूमिका निभानी चाहिए।”

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