रूस का Su-57 विमान चीन में दिखा अपना जादू, मिला पहला ग्राहक, भारत से क्यों नहीं मिला करार?
रूस को एक बड़ी सफलता मिली है, जब उसके नवीनतम Su-57 (पाँचवीं पीढ़ी का लड़ाकू विमान) ने चीन में अपने करतब से सभी को हैरान कर दिया। इस विमान की शानदार प्रदर्शन के बाद चीन ने इसे खरीदने के लिए पहला करार किया है, जिससे रूस को वैश्विक रक्षा बाजार में एक बड़ा कदम आगे बढ़ाने का मौका मिला है। यह विमान अपनी उन्नत तकनीक और क्षमता के कारण दुनिया भर के देशों की सुरक्षा नीतियों में दिलचस्पी का केंद्र बना हुआ है।
Su-57 लड़ाकू विमान की विशेषताएँ इसे अन्य विमानों से अलग करती हैं, जिसमें अत्याधुनिक एंटी-रडार क्षमता, सुपरसोनिक क्रूज़िंग, और अत्याधुनिक एवियोनिक्स जैसी सुविधाएं शामिल हैं। इस विमान को रूस ने अपनी राष्ट्रीय रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए विकसित किया था, लेकिन अब इसे वैश्विक बाजार में एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
चीन द्वारा Su-57 को खरीदने का फैसला रूस के लिए एक बड़ा मोड़ साबित हो सकता है। चीन ने हाल ही में अपनी वायुसेना के आधुनिकीकरण के लिए रूस के साथ कई रक्षा सौदों को लेकर बातचीत शुरू की थी, और अब Su-57 को खरीदने का यह कदम इसे रूस के रक्षा उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण जीत बनाता है। हालांकि, भारत ने इस विमान को अपनी वायुसेना में शामिल करने पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है।
भारत और रूस के बीच सैन्य सहयोग काफी गहरा है, लेकिन भारत ने अभी तक Su-57 के बारे में कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिया है। भारत पहले से ही रूस से सुखोई-30 और मिग-29 जैसे लड़ाकू विमानों का उपयोग करता है, लेकिन Su-57 के मामले में भारतीय रक्षा विशेषज्ञ अभी भी इस विमान की क्षमता और भारतीय वायुसेना की जरूरतों का मूल्यांकन कर रहे हैं। भारत ने अपनी वायुसेना के आधुनिकीकरण के लिए स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान (LCA) और राफेल जैसे विमान भी चुने हैं, और वह रूस के साथ साथ अन्य देशों से भी सैन्य विमान खरीदने पर विचार कर रहा है।
रूस के लिए यह एक अहम पल है, क्योंकि इसे चीन से पहला ग्राहक मिला है, और यह रूस की रक्षा उत्पादों की मार्केटिंग रणनीति के लिए एक बड़ा अवसर साबित हो सकता है। वहीं, भारत के लिए यह एक अहम सवाल बन सकता है कि क्या वह भविष्य में Su-57 को अपने बेड़े में शामिल करेगा, या फिर अन्य विकल्पों की ओर बढ़ेगा।