कहां लिखा है लोफरों और गुंडों को राजनीति करनी चाहिए… खरगे के भगवाधारी तंज पर भड़के रामभद्राचार्य
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा दिए गए एक बयान पर अब रामभद्राचार्य (कद्दावर संत और विख्यात धर्म गुरु) ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। खरगे ने भगवाधारी नेताओं को लेकर एक टिप्पणी की थी, जिसे रामभद्राचार्य ने राजनीतिक और धार्मिक सम्मान पर हमला मानते हुए अपनी नाराजगी व्यक्त की है।
क्या था खरगे का बयान?
मल्लिकार्जुन खरगे ने हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान भगवाधारी नेताओं के बारे में यह बयान दिया था कि “लोफरों और गुंडों को राजनीति करनी चाहिए”। हालांकि उनका इशारा सीधे तौर पर किसी विशेष नेता या संगठन की ओर नहीं था, लेकिन उनके इस बयान को कई लोग धार्मिक और राजनीतिक रूप से संवेदनशील मानते हैं। विशेष रूप से यह बयान तब सामने आया, जब भगवाधारी नेताओं ने चुनावी प्रचार के दौरान सक्रिय रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी।
रामभद्राचार्य की प्रतिक्रिया
रामभद्राचार्य ने खरगे के बयान पर अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “किसी भी व्यक्ति को धर्म और राजनीति को जोड़ने का अधिकार नहीं है, खासकर जब वह किसी खास धर्म या वर्ग को निशाना बना रहा हो”। रामभद्राचार्य ने कहा कि “यह बयान भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक मूल्य और धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है”। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनके लिए भगवाधारी नेता सत्कर्म करने वाले और समाज में शांति और भाईचारे को बढ़ावा देने वाले होते हैं, और ऐसे नेताओं को “लोफर” और “गुंडा” कहना अनुचित और अपमानजनक है।
विवाद का फैलाव
रामभद्राचार्य की प्रतिक्रिया ने राजनीतिक और धार्मिक माहौल को और भी गर्मा दिया है। भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अन्य धार्मिक संगठनों ने खरगे के बयान की निंदा की है और इसे उनके समाज के प्रति असंवेदनशीलता के रूप में पेश किया है। वहीं, कांग्रेस के कुछ समर्थक इस बयान को रूढ़िवादी सोच और राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से बाहर रखने की जरूरत के रूप में देख रहे हैं।
इस बयान पर हिंदू धर्म के वरिष्ठ संतों ने भी प्रतिक्रिया दी है, जिनका कहना है कि राजनीतिक बयानबाजी में धार्मिक भावनाओं को चोट नहीं पहुंचनी चाहिए। इससे यह स्पष्ट होता है कि धार्मिक और राजनीतिक दलों के बीच की रेखा अब और भी उलझ गई है।
रामभद्राचार्य का संदेश
रामभद्राचार्य ने अपने संदेश में यह भी कहा कि “राजनीति और धर्म दोनों को ही सम्मान देना चाहिए, और अगर किसी को राजनीति करनी है तो उसे अपने आचरण और कार्यों से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करनी चाहिए”। उन्होंने यह अपील भी की कि राजनीतिक नेता और संत दोनों को अपने शब्दों और कृत्यों में संतुलन बनाए रखना चाहिए, ताकि समाज में परस्पर सौहार्द और शांति बनी रहे।