प्राचीन और मध्यकालीन भारत में संस्कृत तमिलनाडु की प्रमुख भाषा थी: चित्रा माधवन
“प्रसिद्ध इतिहासकार चित्रा माधवन ने कहा है कि प्राचीन और मध्यकालीन भारत के दौरान संस्कृत तमिलनाडु की प्रमुख भाषा थी। उन्होंने बताया कि संस्कृत का तमिलनाडु की संस्कृति, साहित्य और समाज पर गहरा प्रभाव था। यह वक्तव्य भारतीय भाषाओं के आपसी संबंधों को समझने और उनकी प्राचीन धरोहर को जानने का अवसर देता है।”
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) ने अपनी संस्थापक सदस्य सचिव डॉ. कपिला वात्स्यायन की स्मृति में आयोजित वार्षिक व्याख्यान में इस वर्ष ‘तमिलनाडु के संस्कृत शिलालेख: मंदिर वास्तुकला और छवि निरूपण से संबंध’ विषय पर चर्चा की। इस प्रतिष्ठित व्याख्यान में इतिहासकार डॉ. चित्रा माधवन ने तमिलनाडु के संस्कृत शिलालेखों और उनके मंदिर वास्तुकला से जुड़ाव पर गहराई से जानकारी प्रदान की।
मुख्य बातें:
1. संस्कृत का ऐतिहासिक महत्व:
डॉ. चित्रा माधवन ने बताया कि प्राचीन और मध्यकालीन भारत में तमिलनाडु में संस्कृत व्यापक रूप से प्रचलित थी। पल्लव, चोल, पांड्य और विजयनगर साम्राज्य के काल में संस्कृत शिलालेखों को ग्रंथ लिपि में उत्कीर्ण किया गया।
2. मंदिरों और संस्कृत शिलालेखों का जुड़ाव:
डॉ. माधवन ने बताया कि तमिलनाडु के कई मंदिरों के संस्कृत अभिलेख न केवल धार्मिक महत्व को दर्शाते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास को भी उजागर करते हैं।
- सूर्यनार कोविल मंदिर:
इस मंदिर का निर्माण कुम्भकोणम के पास चोल राजाओं द्वारा हुआ था। यहां के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि इसका निर्माण कन्नौज के शासकों की सहायता से हुआ। - काञ्चीपुरम का अयंगर कुलम् मंदिर:
यहां के शिलालेख बताते हैं कि मंदिर का निर्माण लक्ष्मीकुमार ताताचार्य द्वारा किया गया।
3. शिक्षा और स्वास्थ्य का वर्णन:
- एन्नायिरम स्थित मंदिर के शिलालेख बताते हैं कि यहां वैदिक महाविद्यालय और छात्रावास थे। छात्रों को छात्रवृत्ति और शिक्षकों को वेतन मिलता था।
- अन्य मंदिरों में अस्पताल और आयुर्वेदिक औषधालय की जानकारी भी मिलती है।
4. उत्तर-दक्षिण का संबंध:
डॉ. माधवन ने उत्तर और दक्षिण के शासकों के वैवाहिक और सांस्कृतिक संबंधों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत ने इन दोनों क्षेत्रों को जोड़े रखा।
डॉ. कपिला वात्स्यायन का योगदान:
डॉ. कपिला वात्स्यायन भारतीय कला और संस्कृति के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम थीं। उन्होंने आईजीएनसीए को अपनी दुर्लभ पुस्तकों और पत्रिकाओं का संग्रह दान किया। कला, साहित्य और प्रशासन में उनके योगदान के लिए उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
डॉ. कपिला वात्स्यायन स्मृति व्याख्यान भारतीय इतिहास, संस्कृति और वास्तुकला को समझने का एक महत्वपूर्ण मंच है। इस वर्ष के व्याख्यान ने तमिलनाडु के संस्कृत शिलालेखों और मंदिर वास्तुकला पर गहन जानकारी दी। यह विरासत युवाओं को अपनी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित और समझने के लिए प्रेरित करती है।