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असम में पहली बार गंगा डॉल्फिन की टैगिंग, वन्यजीव संरक्षण में मील का पत्थर

“गुवाहाटी: असम में वन्यजीव संरक्षण को नई दिशा देते हुए पहली बार गंगा नदी डॉल्फिन की सैटेलाइट टैगिंग की गई है। यह कदम डॉल्फिन संरक्षण के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो उनके व्यवहार और आवास के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।”

गंगा डॉल्फिन: राष्ट्रीय जलीय जीव

गंगा डॉल्फिन भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव है और यह मुख्य रूप से गंगा, ब्रह्मपुत्र और मेघना नदी प्रणालियों में पाई जाती है। बढ़ते प्रदूषण, जल यातायात और शिकार के कारण इनकी संख्या में लगातार गिरावट आ रही है, जिसके चलते यह विलुप्तप्राय प्रजाति घोषित की गई है।


टैगिंग क्यों है खास?

  1. डॉल्फिन के प्रवास का अध्ययन: यह टैगिंग डॉल्फिन की गतिविधियों और उनके आवास क्षेत्रों का डेटा प्रदान करेगी।
  2. संरक्षण रणनीति: वैज्ञानिक और वन्यजीव विशेषज्ञ इन जानकारियों के आधार पर बेहतर संरक्षण योजनाएं बना सकेंगे।
  3. पर्यावरण प्रभाव: टैगिंग से मानव गतिविधियों, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने में मदद मिलेगी।

कैसे की गई टैगिंग?

वन विभाग और विशेषज्ञों की टीम ने गंगा डॉल्फिन पर हल्के वजन का सैटेलाइट टैग लगाया। इस तकनीक से डॉल्फिन के मूवमेंट और उनके व्यवहार का रियल-टाइम डेटा मिलेगा, जिसे विश्लेषण के लिए उपयोग किया जाएगा।

विशेषज्ञों की राय

वन्यजीव संरक्षण विशेषज्ञों ने इस उपलब्धि को “मील का पत्थर” बताया है। उनका कहना है कि टैगिंग से डॉल्फिन की सुरक्षा को बढ़ावा मिलेगा और उनके संरक्षण के लिए नए कदम उठाए जा सकेंगे।


गंगा डॉल्फिन के सामने चुनौतियां:

  • जल प्रदूषण: नदियों में बढ़ता कचरा और रसायन इनकी सेहत पर बुरा असर डाल रहे हैं।
  • अवैध शिकार: डॉल्फिन को तेल और मछली पकड़ने के जाल के लिए शिकार बनाया जाता है।
  • परिवहन गतिविधियां: जल यातायात के कारण उनके आवास क्षेत्र में बाधा पहुंच रही है।

असम सरकार का योगदान

असम सरकार ने गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के लिए कई योजनाएं लागू की हैं। इस टैगिंग प्रक्रिया से भविष्य में न केवल गंगा डॉल्फिन की संख्या में सुधार की उम्मीद है बल्कि पर्यावरण संतुलन भी बनाए रखने में मदद मिलेगी।

जनभागीदारी की अपील

विशेषज्ञों ने आम लोगों से अपील की है कि वे नदियों को स्वच्छ रखने में योगदान दें और वन्यजीव संरक्षण का हिस्सा बनें।

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