अट्टुकल पोंगल: केरल का भव्य महिला उत्सव और आस्था का प्रतीक
“अट्टुकल पोंगल एक आध्यात्मिक और भक्ति से परिपूर्ण उत्सव है, जो केरल की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को दर्शाता है। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि महिलाओं की एकता और उनकी अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत को भी दर्शाता है।“
गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज हुआ यह उत्सव
2009 में, अट्टुकल पोंगल को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में स्थान मिला, क्योंकि यह महिलाओं की सबसे बड़ी धार्मिक सभा थी। इस भव्य आयोजन में 25 लाख से अधिक महिलाओं ने एक साथ भाग लिया और देवी भगवती को पोंगल चढ़ाया।
अट्टुकल भगवती मंदिर: उत्सव का केंद्र
- यह उत्सव केरल के तिरुवनंतपुरम में अट्टुकल भगवती मंदिर में मनाया जाता है।
- लाखों महिलाएं देवी भगवती को पोंगल चढ़ाने के लिए एकत्रित होती हैं।
- देवी भगवती को प्यार से ‘अट्टुकलम्मा’ के नाम से भी जाना जाता है।
पोंगल अनुष्ठान और इसकी धार्मिक मान्यता
पोंगल बनाने की विधि और महत्व
- महिलाएं मिट्टी के बर्तनों में चावल, गुड़, नारियल और केले से बना मीठा व्यंजन ‘पोंगल’ तैयार करती हैं।
- पोंगल शब्द का अर्थ ‘उबालना’ होता है, जो देवी को प्रसन्न करने और घर में समृद्धि लाने के लिए किया जाता है।
- यह अनुष्ठान केवल भक्ति का नहीं, बल्कि समुदाय की एकजुटता का भी प्रतीक है।
उत्सव के दौरान तिरुवनंतपुरम का नजारा
- अट्टुकल पोंगल के समय तिरुवनंतपुरम की सड़कें महिला भक्तों से भर जाती हैं।
- पूरा शहर आस्था और भक्ति के एक जीवंत सागर में तब्दील हो जाता है।
- जाति, धर्म और संप्रदाय से परे, सभी वर्गों की महिलाएं इस पवित्र आयोजन में भाग लेती हैं।
10 दिन तक चलता है यह भव्य उत्सव
- अट्टुकल पोंगल 10 दिनों तक चलता है।
- यह मलयालम महीने मकरम-कुंभम (फरवरी-मार्च) में कार्तिक नक्षत्र के दौरान शुरू होता है।
- मुख्य पोंगल समारोह पूरम नक्षत्र के शुभ दिन पर मनाया जाता है, जो पूर्णिमा के साथ मेल खाता है।
कप्पुकेट्टू समारोह: उत्सव की शुरुआत
- यह पर्व कप्पुकेट्टू समारोह से आरंभ होता है।
- इस दौरान देवी की पौराणिक कथा ‘कन्नकी चरितम’ का संगीतमय वर्णन किया जाता है।
- यह कोडुंगल्लूर भगवती की उपस्थिति का आह्वान करने वाला एक विशेष अनुष्ठान है।
- यह संगीतमय कथा नौ दिनों तक जारी रहती है, जो मुख्य आयोजन तक ले जाती है।
नौवें दिन का पवित्र आयोजन
- अट्टुकल मंदिर के आसपास का पूरा इलाका पोंगल अनुष्ठान के लिए पवित्र स्थल में बदल जाता है।
- लगभग 7 किलोमीटर के क्षेत्र में लाखों महिलाएं एक साथ बैठकर पोंगल चढ़ाती हैं।
- महिलाएं जलाऊ लकड़ी, मिट्टी के बर्तन, चावल, गुड़ और नारियल जैसी सामग्री लेकर देवी को अर्पित करने आती हैं।
- मंदिर के मुख्य पुजारी पूर्व-निर्धारित शुभ समय पर चूल्हा जलाने का संकेत देते हैं और इसके साथ ही सभी महिलाएं पोंगल बनाना शुरू करती हैं।
अट्टुकल पोंगल का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
1. महिलाओं की शक्ति और एकता का प्रतीक
- अट्टुकल पोंगल केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि महिलाओं की शक्ति, सामूहिकता और सामाजिक सहभागिता का भी परिचायक है।
- इस उत्सव में जाति, पंथ और सामाजिक स्थिति का कोई भेदभाव नहीं होता।
2. केरल की सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उदाहरण
- यह उत्सव केरल की समृद्ध सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं को संजोता है।
- इस दौरान महिलाएं परंपरागत केरल साड़ी पहनती हैं और भक्ति गीत गाती हैं।
3. स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा
- इस भव्य आयोजन के दौरान स्थानीय व्यापारियों और विक्रेताओं के लिए अच्छा व्यवसाय होता है।
- हजारों लोग इस आयोजन को देखने और भाग लेने के लिए केरल आते हैं, जिससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता है।
अट्टुकल पोंगल केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि महिलाओं की सामूहिक आस्था, एकता और शक्ति का उत्सव है।
- यह पर्व केरल की सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
- महिलाओं की सामूहिक भक्ति और शक्ति को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने वाला यह आयोजन गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हो चुका है।
- यह परंपरा, भक्ति और उत्सव का एक अनूठा संगम है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता जा रहा है।