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भारत बना विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक, 10 सालों में 63% बढ़ा उत्पादन

भारत ने दूध उत्पादन के क्षेत्र में एक और मील का पत्थर हासिल किया है। पिछले एक दशक में भारत का दूध उत्पादन 63.56% बढ़कर 239.2 मिलियन टन (2023-24) तक पहुंच गया है, जो कि वर्ष 2014-15 में 146.3 मिलियन टन था। इस तरह भारत दूध उत्पादन में 5.7% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ न केवल अपनी जरूरतें पूरी कर रहा है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अहम भूमिका निभा रहा है।

इस दौरान प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता भी उल्लेखनीय रूप से बढ़ी है। जहां एक ओर भारत में अब प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता 471 ग्राम/व्यक्ति/दिन से अधिक है, वहीं वैश्विक औसत 322 ग्राम/व्यक्ति/दिन है। यह जानकारी पशुपालन, मत्स्य पालन और डेयरी राज्य मंत्री एस.पी. सिंह बघेल ने लोकसभा में दी।

दूध उत्पादन में भारत की वैश्विक स्थिति

भारत 1998 से लगातार दुनिया में दूध उत्पादन में पहले स्थान पर बना हुआ है। वर्तमान में भारत वैश्विक दूध उत्पादन में 25% से अधिक योगदान दे रहा है, जो देश की खाद्य सुरक्षा, पोषण स्तर और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती को दर्शाता है।

दूध उत्पादन को बढ़ावा देने वाली प्रमुख योजनाएं

भारत सरकार ने डेयरी क्षेत्र को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जिनके परिणामस्वरूप यह वृद्धि संभव हो पाई है:

1. राष्ट्रीय डेयरी विकास कार्यक्रम (NPDD)

  • यह योजना पूरे देश में लागू की जा रही है।
  • इसका उद्देश्य राज्य सरकारों के साथ मिलकर दूध उत्पादन, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना है।
  • क्वालिटी मिल्क टेस्टिंग इक्विपमेंट की स्थापना से दूध की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा रही है।

2. सहकारिता के माध्यम से डेयरी योजना

  • इस योजना का उद्देश्य किसानों की संगठित बाजारों तक पहुंच बढ़ाना है।
  • डेयरी प्रोसेसिंग इकाइयों और मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर को अपग्रेड करने में मदद की जा रही है।
  • उत्पादक-स्वामित्व वाली संस्थाओं की क्षमता बढ़ाकर किसानों को बेहतर मूल्य दिलाया जा रहा है।

3. पशुपालन अवसंरचना विकास निधि (AHIDF)

  • यह योजना व्यक्तिगत उद्यमियों, सहकारी समितियों, एमएसएमई, निजी कंपनियों और धारा 8 कंपनियों को ऋण सुविधा प्रदान करती है।
  • इसके तहत निम्नलिखित क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहन मिल रहा है:
    • डेयरी प्रोसेसिंग और वैल्यू एडिशन
    • पशु आहार निर्माण संयंत्र
    • नस्ल सुधार और ब्रीड फार्म
    • पशु अपशिष्ट प्रबंधन
    • पशु चिकित्सा टीका और औषधि उत्पादन इकाइयों की स्थापना

4. राष्ट्रीय गोकुल मिशन

  • इस मिशन का उद्देश्य देशी नस्लों के विकास और संरक्षण के साथ-साथ उनके उत्पादन स्तर में सुधार करना है।
  • गोकुल ग्राम, नस्ल सुधार तकनीक और IVF जैसी उन्नत तकनीकों का उपयोग इस मिशन में शामिल है।
  • इससे न केवल दूध की गुणवत्ता सुधरी है, बल्कि उत्पादन में भी इजाफा हुआ है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती

भारत में डेयरी उद्योग का बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों से आता है। दूध उत्पादन से जुड़ी 70% से अधिक आबादी ग्रामीण इलाकों में है, जिनमें से बड़ी संख्या में महिलाएं भी सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं। इससे न केवल आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ी है, बल्कि महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा मिला है।

दूध की गुणवत्ता और परीक्षण सुविधा

सरकार ने देशभर में मिल्क टेस्टिंग लैब्स की स्थापना की है जिससे किसानों को उनके दूध की गुणवत्ता के अनुसार सही मूल्य मिल सके। यह पारदर्शिता और गुणवत्ता सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

नवाचार और तकनीकी विकास

  • डिजिटल डेयरी प्लेटफॉर्म, मोबाइल ऐप्स, डेटा आधारित पशु स्वास्थ्य सेवाएं, और ऑटोमेटेड मिल्क कलेक्शन यूनिट्स जैसे नवाचारों ने पूरे डेयरी नेटवर्क को आधुनिक और कुशल बनाया है।
  • किसानों को मोबाइल के माध्यम से दूध के रेट, परीक्षण रिपोर्ट और भुगतान की जानकारी तुरंत मिल रही है।

चुनौतियाँ और भविष्य की दिशा

जलवायु परिवर्तन का असर

गर्मी और जल संकट से पशुओं की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ सकता है।

बाजार तक पहुंच

ग्रामीण इलाकों से उत्पादों को शहरों के बाजार तक पहुंचाने की व्यवस्था को और मजबूत करने की आवश्यकता है।

मूल्य निर्धारण

दूध की कीमतें कई बार अस्थिर हो जाती हैं, जिससे छोटे किसानों को नुकसान होता है।

सरकार इन समस्याओं के समाधान के लिए टेक्नोलॉजी, प्रशिक्षण, और बाजार संपर्क योजनाएं चला रही है।

भारत का डेयरी क्षेत्र अब केवल घरेलू जरूरतों को पूरा करने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह वैश्विक मंच पर भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है। पिछले 10 वर्षों में 63% की वृद्धि, प्रति व्यक्ति दूध की उपलब्धता में 48% का इजाफा, और वैश्विक उत्पादन में 25% योगदान – ये आंकड़े भारत की दूध क्रांति की नई कहानी बयां कर रहे हैं।

सरकार की योजनाएं जैसे गोकुल मिशन, एनपीडीडी, एएचआईडीएफ, और सहकारिता मॉडल किसानों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के साथ-साथ उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण डेयरी उत्पाद उपलब्ध कराने में भी सफल रही हैं।

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