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तमिलनाडु में दलित छात्र पर जातीय हमला: NHRC ने लिया स्वतः संज्ञान, चार सप्ताह में मांगी रिपोर्ट

तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले से एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहाँ एक अनुसूचित जाति (दलित) के 11वीं कक्षा के छात्र पर कुछ उच्च जाति के युवकों ने जानलेवा हमला किया। यह मामला न सिर्फ सामाजिक असमानता की गंभीर तस्वीर पेश करता है, बल्कि इससे हमारे समाज में जातिवाद की गहराई भी उजागर होती है।

इस घटना को गंभीरता से लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) ने स्वतः संज्ञान लिया है और तमिलनाडु सरकार से तत्काल कार्रवाई की मांग की है। आयोग ने तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक और थूथुकुडी के जिला कलेक्टर को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा है।

घटना की पूरी जानकारी

यह दर्दनाक घटना उस समय घटी जब पीड़ित छात्र परीक्षा देने के लिए बस में सफर कर रहा था। उसी दौरान कुछ उच्च जाति के लड़कों ने उसे बस से बाहर खींच लिया और उस पर धारदार हथियार (दरांती) से हमला कर दिया। हमले में छात्र का बायां हाथ गंभीर रूप से घायल हुआ और उसकी उंगलियां कट गईं।

जब छात्र के पिता ने बीच-बचाव की कोशिश की तो उन पर भी हमला किया गया। यह न सिर्फ एक छात्र के खिलाफ हिंसा थी, बल्कि यह हमला उस पूरे समुदाय के खिलाफ एक संदेश के रूप में देखा जा सकता है जो आज भी जातीय भेदभाव का शिकार होता आ रहा है।

इलाज और राहत कार्य

हमले के तुरंत बाद छात्र को पास के तिरुनेलवेली सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहाँ डॉक्टरों की टीम ने सात घंटे की लंबी सर्जरी के बाद उसकी कटी हुई उंगलियों को जोड़ने में सफलता पाई। यह राहत की बात जरूर है, लेकिन जो मानसिक और शारीरिक चोट इस छात्र को मिली है, उसकी भरपाई आसान नहीं।

NHRC का रुख और बयान

12 मार्च, 2025 को मीडिया में आई खबरों के आधार पर NHRC ने स्वतः संज्ञान लिया और इसे मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन बताया। आयोग ने कहा कि यदि मीडिया रिपोर्ट सही है तो यह घटना न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है बल्कि यह राज्य की जिम्मेदार संस्थाओं के लिए एक चेतावनी भी है।

आयोग ने संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि पीड़ित को उचित मुआवजा, सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान की जाए। साथ ही अपराधियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर न्यायिक प्रक्रिया के तहत सजा दिलवाई जाए।

जातीय भेदभाव: अब भी एक कड़वी सच्चाई

यह मामला बताता है कि भारत में जातीय भेदभाव आज भी पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है। स्कूल और कॉलेज जैसे शिक्षण संस्थानों में भी जाति आधारित हिंसा होना बेहद चिंता का विषय है। जहाँ एक ओर हम डिजिटल इंडिया और चंद्रयान की बात करते हैं, वहीं दूसरी ओर एक छात्र को केवल उसकी जाति की वजह से पीट-पीट कर घायल कर दिया जाता है।

कानूनी पहलू और आवश्यक कदम

इस मामले में SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। अपराधियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में लिया जाना चाहिए ताकि पीड़ित परिवार को न्याय मिल सके और समाज में एक सख्त संदेश जाए।

इसके अलावा राज्य सरकार और शिक्षा विभाग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी छात्रों को समान अधिकार और सुरक्षा मिले, चाहे उनकी जाति कुछ भी हो। स्कूल प्रशासन को भी सतर्कता बरतनी होगी और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए समय-समय पर सामाजिक जागरूकता कार्यक्रम चलाने होंगे।

समाज की भूमिका

ऐसी घटनाओं को केवल सरकारी कार्रवाई से नहीं रोका जा सकता। समाज को भी जागरूक और संवेदनशील होना पड़ेगा। हमें जाति, धर्म, भाषा आदि के नाम पर दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति को समाप्त करना होगा। यदि हम एक समतामूलक समाज बनाना चाहते हैं तो बच्चों को छोटी उम्र से ही समानता और इंसानियत का पाठ पढ़ाना होगा।

तमिलनाडु में दलित छात्र पर हुआ यह हमला हमारे समाज के लिए एक चेतावनी है। NHRC का इसमें सक्रिय होना एक सकारात्मक कदम है, लेकिन अब ज़रूरत है कि राज्य सरकार, प्रशासन और आम नागरिक मिलकर यह सुनिश्चित करें कि ऐसी घटनाएं भविष्य में न दोहराई जाएं। पीड़ित छात्र को न्याय दिलाने के साथ-साथ समाज में समरसता और भाईचारे की भावना को भी मजबूती देना हमारी जिम्मेदारी है।

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