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दांडी मार्च: स्वतंत्रता संग्राम का ऐतिहासिक मोड़

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, लेकिन कुछ घटनाएं ऐसी थीं जिन्होंने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया। दांडी मार्च इन्हीं में से एक था। यह केवल एक आंदोलन नहीं था, बल्कि सत्य, अहिंसा और आत्मनिर्भरता का प्रतीक था। 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में शुरू हुआ यह मार्च ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक बन गया।

दांडी मार्च की पृष्ठभूमि

दांडी मार्च को नमक सत्याग्रह भी कहा जाता है। यह ब्रिटिश सरकार द्वारा लगाए गए नमक कर के विरोध में था। ब्रिटिश सरकार ने भारत में नमक उत्पादन और बिक्री पर एकाधिकार कर रखा था, जिससे भारतीयों को ऊंची कीमतों पर नमक खरीदना पड़ता था। गांधीजी ने इस अन्यायपूर्ण कानून के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया और सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की।

मार्च की शुरुआत और यात्रा

महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से 78 सत्याग्रहियों के साथ दांडी यात्रा शुरू की। यह यात्रा 241 मील (लगभग 385 किलोमीटर) लंबी थी, जो गुजरात के विभिन्न गांवों से होकर गुजरी। गांधीजी रास्ते में कई जगह रुककर स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और अहिंसा के संदेश देते गए।

यात्रा के दौरान लोगों का समर्थन

गांधीजी का यह आंदोलन केवल उनके अनुयायियों तक सीमित नहीं रहा। जैसे-जैसे यह यात्रा आगे बढ़ी, हजारों लोग इस आंदोलन से जुड़ते गए। पूरे देश में ब्रिटिश शासन के प्रति असंतोष बढ़ता गया और कई अन्य हिस्सों में भी नमक सत्याग्रह शुरू हो गया।

नमक कानून का उल्लंघन

6 अप्रैल 1930 को गांधीजी अपने अनुयायियों के साथ दांडी गांव के समुद्र तट पर पहुंचे। वहां उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर ब्रिटिश कानून को तोड़ा। यह एक ऐतिहासिक क्षण था जिसने पूरे देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ आंदोलन को और मजबूत कर दिया। इसके बाद हजारों भारतीयों ने नमक कानून तोड़कर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ अपने असंतोष को जाहिर किया।

ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया

ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए कड़े कदम उठाए। हजारों सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल और पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसे प्रमुख नेता भी शामिल थे। लेकिन यह आंदोलन इतना व्यापक हो चुका था कि इसे रोक पाना ब्रिटिश सरकार के लिए मुश्किल हो गया।

दांडी मार्च का प्रभाव

  1. स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा मिली: दांडी मार्च ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। इसने लोगों में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष का आत्मविश्वास बढ़ाया।
  2. अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला: यह आंदोलन केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी समर्थन मिला। विदेशी मीडिया ने इसे व्यापक रूप से कवर किया, जिससे दुनिया को ब्रिटिश सरकार के दमनकारी नीतियों के बारे में पता चला।
  3. सत्य और अहिंसा की शक्ति दिखी: महात्मा गांधी के नेतृत्व में यह आंदोलन सत्य और अहिंसा की ताकत का सबसे बड़ा उदाहरण बना। बिना हिंसा के, केवल शांतिपूर्ण विरोध से उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती दी।
  4. आगे के आंदोलनों की नींव रखी: दांडी मार्च के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन जैसे बड़े आंदोलनों की शुरुआत हुई, जो अंततः भारत की स्वतंत्रता का कारण बने।

दांडी मार्च से मिली प्रेरणा

आज भी दांडी मार्च भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रेरणादायक अध्यायों में से एक माना जाता है। यह हमें सिखाता है कि किसी भी अन्याय के खिलाफ अहिंसक संघर्ष से भी सफलता प्राप्त की जा सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस ऐतिहासिक मार्च में भाग लेने वाले सभी लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनका साहस, बलिदान और सत्य एवं अहिंसा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

दांडी मार्च केवल एक आंदोलन नहीं था, बल्कि यह स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता और अहिंसा का प्रतीक था। इसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों में आत्मविश्वास जगाया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। आज भी यह हमें अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने और अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।

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