होयसल वंश की गौरवशाली स्थापत्य परंपरा और बेलूर की ऐतिहासिक यात्रा
“होयसल स्थापत्य कला का नाम लेते ही मन में पत्थर पर की गई अत्यंत जटिल नक्काशी की छवियाँ उभर आती हैं। यह कला भारत की स्थापत्य परंपरा की अनमोल धरोहरों में से एक है, जिसे होयसल राजाओं ने अपने तीन शताब्दियों के शासनकाल (1000 ई. से 1346 ई.) में विकसित किया। मूलतः मलेनाडु क्षेत्र से आए इन वीर शासकों ने न केवल सामरिक विजय हासिल की बल्कि कला और संस्कृति के क्षेत्र में भी ऐतिहासिक योगदान दिया।“
सांस्कृतिक विरासत की खोज में दक्षिण भारत की यात्रा
मेरी यह सांस्कृतिक यात्रा उड़ीसा से प्रारंभ होकर तमिलनाडु और केरल होते हुए कर्नाटक की ओर अग्रसर हो रही थी। दक्षिण भारत की समृद्ध स्थापत्य परंपरा को देखने की इच्छा ने मुझे नागरकोइल से बेंगलुरु तक एक ओवरनाइट रेल यात्रा करने के लिए प्रेरित किया। दक्षिण भारत की रेलगाड़ियाँ उत्तर भारत के मुकाबले अपेक्षाकृत शांत होती हैं, जिससे यात्रा आरामदायक रहती है।
शाम 6 बजे ट्रेन पकड़ने के बाद, मैं अगली सुबह बेंगलुरु पहुंची। बेंगलुरु के भारी यातायात को पार करने में ही दो घंटे लगे। इसके बाद मैंने राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 373 की ओर रुख किया, जो बेंगलुरु से हासन और फिर बेलूर तक जाता है।
बेलूर: इतिहास में डूबी एक शांत नगरी
जब हम ‘बेलूर’ नाम सुनते हैं, तो एक भ्रम उत्पन्न हो सकता है क्योंकि पश्चिम बंगाल का बेलूर मठ भी प्रसिद्ध है। लेकिन मेरी मंज़िल थी कर्नाटक के हासन जिले का बेलूर, जो कभी होयसल साम्राज्य की राजधानी रहा है। आज यह एक शांत नगर है, लेकिन अपने भव्य अतीत को संजोए हुए है।
बेलूर का कोई स्वतंत्र रेलवे स्टेशन नहीं है। नज़दीकी स्टेशन हासन (लगभग 15 किमी दूर) है। यहां पहुंचने का सबसे सुगम साधन कर्नाटक रोडवेज (KSRTC) की बस सेवाएं हैं, जिनमें वोल्वो बसें भी शामिल हैं। KSRTC की ऐप से बुकिंग कर आप यात्रा को बेहद सुगम बना सकते हैं।
बेलूर एक ऐसा नगर है जहां मंदिर बस स्टैंड से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। यात्रा के दौरान नारियल और केले के हरे-भरे बाग मन को शांति देते हैं। यह हरियाली इस क्षेत्र की उर्वरता और समृद्ध संस्कृति का प्रतीक है।
क्यों बना बेलूर होयसल साम्राज्य की राजधानी?
इस प्रश्न का उत्तर इतिहास में छिपा है। होयसल शासक मूलतः पश्चिमी घाट के गिरिवासी क्षेत्र मलेनाडु से आए थे। 12वीं शताब्दी में कल्याणी के कलचुरियों और पश्चिमी चालुक्यों के बीच उत्पन्न राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर उन्होंने कर्नाटक और तमिलनाडु के उपजाऊ क्षेत्रों पर अधिकार किया।
जल्द ही उनका राज्य दक्कन के पठार से लेकर आंध्र प्रदेश तक फैल गया। इस शक्ति विस्तार के साथ उन्होंने बेलूर को अपनी राजधानी बनाया, जहां से उन्होंने अपनी वीरता और स्थापत्य कला दोनों को दर्शाया।
होयसल मंदिर: विश्व धरोहर में शामिल
होयसल शासकों की स्थापत्य कला की सबसे बड़ी विशेषता है — जटिल और बारीक नक्काशी, जो पत्थर को जीवंत बना देती है। उन्होंने सौ से अधिक मंदिरों का निर्माण कराया, जिनमें से प्रमुख हैं:
- चेनाकेशव मंदिर, बेलूर
- हलेबीडु का होयसलेश्वर मंदिर
- सोमनाथपुर का चेनकेशव मंदिर
इन तीन मंदिरों को 2023 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में शामिल किया गया। यह न केवल स्थापत्य कौशल की मान्यता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक समृद्धि का वैश्विक मंच पर सम्मान भी है।
यात्रा का अनुभव
बेलूर पहुंचते ही मंदिर की भव्यता देखकर अभिभूत रह जाना स्वाभाविक है। चेनाकेशव मंदिर की दीवारों पर बनी मूर्तियां, कथाएं कहती प्रतीत होती हैं। एक-एक मूर्ति जैसे किसी कलाकार की संवेदना का जीवंत रूप है।
यहां की शांति, इतिहास और कला का अद्भुत संगम, इस स्थान को सिर्फ एक पर्यटन स्थल नहीं बल्कि आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव बना देता है।
होयसल स्थापत्य कला भारत की सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य धरोहर है। बेलूर और हलेबीडु जैसे नगर न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह हमें उस युग में ले जाते हैं जब राजा केवल युद्ध नहीं, बल्कि कला, संस्कृति और समाज के निर्माणकर्ता भी होते थे।
अगर आप दक्षिण भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक गहराइयों को समझना चाहते हैं, तो यह यात्रा आपके लिए एक अमूल्य अनुभव हो सकती है। होयसल मंदिर केवल पत्थर के ढांचे नहीं हैं, ये इतिहास की जीवंत कहानियाँ हैं, जिन्हें देखना और महसूस करना हर भारतीय के लिए गर्व की बात होनी चाहिए।