भारत का बड़ा फैसला: पाकिस्तान की ओर पानी के प्रवाह पर रोक, सलाल और बगलिहार बांध के गेट बंद
“पाकिस्तान की ओर पानी का प्रवाह रोका गया — यह वाक्य अब भारत की रणनीतिक नीति का हिस्सा बन चुका है। हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कई कड़े कदम उठाए हैं। इनमें से एक बड़ा फैसला है — चिनाब नदी पर बने सलाल बांध और बगलिहार जलविद्युत परियोजना के गेट बंद कर देना। इस फैसले से जम्मू-कश्मीर के रियासी और रामबन जिलों में चिनाब का जलस्तर गिरा है, और पाकिस्तान की ओर बहने वाला जल पूरी तरह रोका गया है।“
झेलम नदी पर भी इसी तरह की योजना पर काम कर रहा भारत
सलाल और बगलिहार के बाद अब भारत की नजर झेलम नदी पर स्थित किशनगंगा बांध पर है। सरकार की योजना है कि उत्तर कश्मीर में स्थित इस बांध के माध्यम से भी जल प्रवाह को नियंत्रित किया जाए। इसके अलावा, जम्मू संभाग में स्थित बगलिहार बांध पहले से ही भारत को जल प्रवाह के समय और मात्रा को नियंत्रित करने की क्षमता देता है।
प्रधानमंत्री मोदी का स्पष्ट संदेश: पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते
भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया पर लिखा कि प्रधानमंत्री मोदी ने यह निर्णय लेकर स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वालों को जवाब देने की ताकत अब भारत के पास है। उन्होंने इसे प्रधानमंत्री का ‘सशक्त सिद्धांत’ बताया और कहा — “पानी और हमारे नागरिकों का खून एक साथ नहीं बह सकता।”
स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया: सरकार के निर्णय का स्वागत
जम्मू-कश्मीर के लोगों ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। रियासी जिले के एक स्थानीय निवासी दिनेश ने कहा कि पहलगाम में निर्दोष पर्यटकों की हत्या के बाद पाकिस्तान को यही जवाब मिलना चाहिए था। उन्होंने कहा, “हमें गर्व है कि हमारी सरकार ने पाकिस्तान की ओर पानी का प्रवाह रोक दिया है।”
एक अन्य स्थानीय निवासी राधे शाम ने इसे भारत की कूटनीतिक जीत करार दिया। उन्होंने कहा, “भारत सरकार अब हर मोर्चे पर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे रही है। हम पूरी तरह सरकार के साथ हैं।”
सिंधु जल संधि को लेकर भारत का बड़ा कदम
22 अप्रैल को पहलगाम की बैसरन घाटी में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों और नागरिकों की हत्या के बाद, भारत ने दशकों पुरानी सिंधु जल संधि को स्थगित करने का फैसला किया। यह संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई थी, जिसमें भारत ने छह प्रमुख नदियों में से तीन (सतलुज, ब्यास, रावी) पर अधिकार और पाकिस्तान को तीन (सिंधु, झेलम, चिनाब) के जल उपयोग का अधिकार दिया गया था।
अब जब पाकिस्तान की ओर पानी का प्रवाह रोका गया, यह संधि व्यवहारिक रूप से निष्प्रभावी हो गई है।
जल को कूटनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा भारत
पिछले कुछ वर्षों में जल संसाधनों को लेकर कई बार बहस उठी है कि क्या भारत पानी को रणनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है। वर्तमान घटनाक्रम के आधार पर यह स्पष्ट है कि अब भारत ने इसका जवाब ‘हां’ में दिया है।
सलाल और बगलिहार परियोजनाएं भारत को जल प्रवाह नियंत्रित करने की पूर्ण स्वतंत्रता देती हैं। इससे न केवल पाकिस्तान को दबाव में लाया जा सकता है, बल्कि भारत की आंतरिक सुरक्षा नीतियों को भी मज़बूती मिलती है।
जल प्रवाह रोकने के अन्य प्रभाव: पर्यावरण और बिजली
जहां तक बिजली उत्पादन का सवाल है, जल रोकने की नीति से अस्थायी रूप से कुछ प्रभाव हो सकता है। लेकिन सरकार का मानना है कि यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है, इसलिए प्राथमिकता स्पष्ट है।
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि पानी को अस्थायी रूप से रोकने से स्थानीय जलस्तर प्रभावित हो सकता है, लेकिन राष्ट्रीय हित के सामने यह मामूली असर है।
भारत की विदेश नीति में आया बदलाव
पाकिस्तान की ओर पानी का प्रवाह रोका गया — यह कदम बताता है कि भारत अब सिर्फ शब्दों से नहीं, बल्कि ठोस कूटनीतिक और रणनीतिक कदमों से जवाब दे रहा है। भारत अब ‘सौम्यता’ की जगह ‘प्रतिक्रिया’ की नीति पर आगे बढ़ रहा है।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद के हर रूप को सख्ती से जवाब मिलेगा। चाहे वह सीमा सुरक्षा हो या अंतर्राष्ट्रीय संधि, अब भारत अपनी ताकत और हक का पूरा उपयोग करेगा।
जल को अब केवल प्राकृतिक संसाधन नहीं, बल्कि रणनीतिक संसाधन के रूप में देखा जा रहा है।