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भारत के हेल्थ सिस्टम में ऐतिहासिक बदलाव की कहानी: मोदी सरकार की दूरदृष्टि और ज़मीनी काम का असर

भारत में दशकों तक स्वास्थ्य सेवाओं की हालत किसी से छिपी नहीं रही। आज़ादी के बाद भी ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज एक सपने जैसा था। बीमारी की पहचान तो दूर, लोग यह तक नहीं जान पाते थे कि उन्हें कब और किस स्तर की मदद चाहिए। न तो दवाओं की व्यवस्था थी और न ही सही समय पर डॉक्टरी सलाह मिलती थी। लेकिन इस बीमार स्वास्थ्य व्यवस्था को एक नई दिशा देने का काम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हुआ, जिसकी शुरुआत उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए कर दी थी।

स्वास्थ्य व्यवस्था के बदलाव की शुरुआत

भारत की स्वास्थ्य सेवाओं में मोदी सरकार का योगदान सिर्फ नीतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक व्यक्तिगत दृष्टिकोण और संवेदनशीलता से जुड़ा है। नरेंद्र मोदी ने स्वास्थ्य को कभी केवल एक मंत्रालय का कार्य नहीं माना, बल्कि इसे गरीब की गरिमा से जोड़कर देखा। उन्होंने महसूस किया कि अगर देश का अंतिम व्यक्ति स्वस्थ नहीं है, तो देश की प्रगति अधूरी है।

गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में रहते हुए उन्होंने जमीनी स्तर पर बदलाव लाने शुरू किए। डॉ. जेएल मीना, जो पेशे से चिकित्सक हैं, ने एक पुस्तक ‘PHC से NMC तक’ में मोदी के इसी दृष्टिकोण को विस्तार से बताया है। इसमें उनके व्यक्तिगत अनुभव और मोदी की सोच को उजागर किया गया है।

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुधार: एक क्रांतिकारी शुरुआत

डॉ. मीना बताते हैं कि जब उन्होंने गुजरात में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) में अपनी सेवा शुरू की, तो वह जगह पहले ही चार डॉक्टरों के निलंबन की वजह से बदनाम हो चुकी थी। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और ग्रामीणों की मदद से उस PHC को एक उदाहरण बनाकर पेश किया, जहां से एक नई स्वास्थ्य क्रांति की शुरुआत हुई।

PHC की कार्यप्रणाली में सुधार के बाद, राज्य स्तर पर उनकी चर्चा होने लगी। कई अखबारों में उनके कार्य की सराहना हुई और यह साफ हुआ कि यदि नीति और नीयत दोनों सही हों, तो सुधार ज़रूर संभव है।

स्कूल हेल्थ प्रोग्राम: बच्चों की सेहत पर विशेष ध्यान

मोदी के नेतृत्व में शुरू हुआ स्कूल हेल्थ प्रोग्राम बच्चों की सेहत को केंद्र में रखकर तैयार किया गया। डॉ. मीना ने इस योजना को स्कूलों में जाकर खुद लागू किया। उन्होंने सैकड़ों स्कूलों में जाकर बच्चों की जांच की और उनमें से 200 से अधिक बच्चों में गंभीर जन्मजात बीमारियों की पहचान की। इनमें से कई बच्चों को हृदय रोग, क्लेफ्ट लिप, आँखों की समस्याएं और ट्यूमर जैसी बीमारियाँ थीं।

यहां सबसे बड़ी चुनौती थी—इन बच्चों का मुफ्त इलाज कैसे हो? लेकिन मोदी के विज़न और सरकार की सहानुभूतिपूर्ण नीतियों ने इस रास्ते को आसान बनाया।

पीएम बनने से पहले ही बना था स्वास्थ्य सुधार का रोडमैप

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने स्वास्थ्य क्षेत्र में जिस गति और गहराई से काम शुरू किया, वह पहले से तैयार रोडमैप का हिस्सा था। जन औषधि केंद्र, आयुष्मान भारत योजना, हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर, मिशन इन्द्रधनुष, और डिजिटल हेल्थ मिशन जैसे अनेक कार्यक्रमों ने स्वास्थ्य सेवाओं को एक नई दिशा दी।

आयुष्मान भारत योजना

इस योजना के तहत देश के करोड़ों गरीबों को 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया गया है। यह योजना विशेष रूप से गरीबों के लिए “स्वास्थ्य सुरक्षा की गारंटी” बन चुकी है।

जन औषधि योजना

इस पहल के तहत सस्ती और गुणवत्ता युक्त दवाइयाँ जन औषधि केंद्रों के माध्यम से लोगों तक पहुंचाई जा रही हैं। इससे दवाओं पर खर्च कम हुआ है और आम नागरिक को राहत मिली है।

हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर

गांवों और छोटे शहरों में हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स की स्थापना ने प्राथमिक इलाज को लोगों के दरवाजे तक ला दिया है। अब छोटी-छोटी बीमारियों के लिए शहर भागने की जरूरत नहीं है।

एक फिल्म की तरह है यह कहानी

डॉ. मीना के अनुसार, नरेंद्र मोदी इस सुधार यात्रा के निर्माता-निर्देशक हैं, लेकिन इसके हर पात्र आम भारतीय हैं। जिस तरह से मोदी सरकार ने डॉ. मीना जैसे समर्पित चिकित्सकों को आगे बढ़ने और देश के स्वास्थ्य सुधारों में भागीदार बनने का अवसर दिया, वह इस बात का प्रमाण है कि भारत अब बदलाव की ओर है।

भारत की स्वास्थ्य सेवाओं में मोदी सरकार का योगदान केवल योजनाओं के आंकड़ों तक सीमित नहीं है, यह एक विचारधारा, संवेदनशीलता, और दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रेरित क्रांति है। इस यात्रा में डॉ. जेएल मीना जैसे समर्पित चिकित्सकों की भूमिका सराहनीय है, जो प्रधानमंत्री के सपनों को ज़मीन पर उतारने में लगे हैं।

आज देश का अंतिम व्यक्ति भी बेहतर इलाज की उम्मीद कर सकता है, क्योंकि उसके साथ अब एक संवेदनशील नेतृत्व खड़ा है, जिसने यह साबित किया है कि अगर इरादे साफ हों तो बदलाव मुमकिन है।

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