मोहन भागवत का शिक्षा प्रणाली पर बयान: स्वदेशीयों को चुनौता के साथ-चलो
“राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर अपने विचार प्रकट किए। उन्होंने कहा कि बदलते समय के साथ शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, ताकि यह छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायक हो।”
शिक्षा प्रणाली पर क्या बोले मोहन भागवत?
भागवत ने कहा, “हमारे देश की शिक्षा प्रणाली को आधुनिक युग के अनुसार ढालने की जरूरत है। यह न केवल रोजगारपरक हो, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को भी सुदृढ़ करे।” उन्होंने यह भी कहा कि पश्चिमी शिक्षा प्रणाली के अंधानुकरण से बचना चाहिए और भारतीय परंपराओं एवं ज्ञान को प्राथमिकता देनी चाहिए।
आधुनिकता और परंपरा का संगम जरूरी
मोहन भागवत ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा प्रणाली में आधुनिकता के साथ-साथ परंपरागत मूल्यों का संतुलन बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कहा, “नवाचार और प्रौद्योगिकी जरूरी हैं, लेकिन अपने मूल्यों और संस्कृति को भूलना नहीं चाहिए।”
नई शिक्षा नीति का स्वागत
भागवत ने नई शिक्षा नीति (एनईपी) का स्वागत करते हुए इसे एक सकारात्मक कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह नीति छात्रों को उनके कौशल और व्यक्तिगत विकास पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करेगी।
शिक्षा प्रणाली में बदलाव की जरूरत क्यों?
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में बच्चों को केवल अंक और डिग्री तक सीमित कर दिया गया है। भागवत का मानना है कि शिक्षा का उद्देश्य जीवन कौशल, नैतिकता और सांस्कृतिक मूल्यों का विकास करना होना चाहिए।
भागवत के विचारों का महत्व
भागवत के इस बयान से यह स्पष्ट है कि शिक्षा में सुधार की दिशा में एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। शिक्षा प्रणाली को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि यह युवाओं को भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार करे और उन्हें समाज का जिम्मेदार नागरिक बनाए।