पंजाब में स्वास्थ्य बजट का पूरा उपयोग नहीं: कैग रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा
“भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा मंगलवार को पेश की गई 2024 की निष्पादन लेखा परीक्षा रिपोर्ट में पंजाब सरकार की स्वास्थ्य सेवाओं के प्रबंधन में गंभीर खामियों की ओर इशारा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब सरकार द्वारा आवंटित स्वास्थ्य बजट का 6.5% से लेकर 20.74% तक उपयोग नहीं किया गया।“
यह रिपोर्ट न केवल बजट के अप्रभावी उपयोग को उजागर करती है, बल्कि स्वास्थ्य योजनाओं के कार्यान्वयन में हुई देरी और ढिलाई को भी सामने लाती है। यह स्थिति आम जनता की स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं की अनदेखी और सरकारी योजनाओं के प्रति लापरवाही को दर्शाती है।
स्वास्थ्य बजट और जीएसडीपी पर खर्च बेहद कम
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2021-22 के दौरान पंजाब सरकार ने अपने कुल व्यय का केवल 3.11% और राज्य सकल घरेलू उत्पाद (GSDP) का 0.68% ही स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किया। यह आंकड़ा बजट अनुमान के 8% और जीएसडीपी के 2.5% लक्ष्य से काफी कम है।
इससे साफ होता है कि सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र को उतनी प्राथमिकता नहीं दी, जितनी की जरूरत थी। यह स्थिति राज्य के अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रों और मरीजों पर प्रतिकूल असर डाल सकती है।
केंद्र को योजनाएं भेजने में हुई देरी, धन मिलने में अड़चन
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि राज्य कार्यक्रम कार्यान्वयन योजनाएं (SPIPs) प्रत्येक वर्ष 10 से 108 दिनों की देरी से केंद्र सरकार को भेजी गईं। इससे अनुमोदन में देरी हुई और अंततः वित्तीय सहायता की प्राप्ति में भी देरी हुई।
योजनाओं में देरी से जहां एक ओर सरकार को जरूरी फंड समय पर नहीं मिल पाता, वहीं दूसरी ओर जनता को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं पर सीधा असर पड़ता है।
सरकारी धन सरकारी खातों से बाहर पड़ा रहा अप्रयुक्त
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि मार्च 2022 तक:
- पंजाब निरोगी योजना के तहत 4.92 करोड़ रुपये
- मुख्यमंत्री पंजाब कैंसर राहत कोष योजना के तहत 76.81 करोड़ रुपये
सरकारी खातों के बाहर पड़े हुए थे। यह धनराशि उपयुक्त उपयोग के बिना निष्क्रिय रही। इसके अलावा:
- राजिंदरा अस्पताल, पटियाला द्वारा 1.94 करोड़ रुपये का उपयोगकर्ता शुल्क
- पंजाब स्वास्थ्य प्रणाली निगम को 85.70 करोड़ रुपये की रियायती शुल्क राशि
भी कोडल प्रावधानों के उल्लंघन में सरकारी खातों से बाहर रखी गई थी। यह वित्तीय पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी को दर्शाता है।
केंद्र प्रायोजित योजनाओं का भी खराब क्रियान्वयन
कैग रिपोर्ट में कई केंद्र प्रायोजित योजनाओं जैसे:
- राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (NUHM)
- परिवार कल्याण योजना
- कायाकल्प योजना
- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK)
के क्रियान्वयन में भी गंभीर कमियां बताई गई हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि इन योजनाओं के लिए आवंटित धन का भी पूरा उपयोग नहीं किया गया और निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सका।
जननी सुरक्षा योजना और परिवार कल्याण योजना के तहत दी जाने वाली वित्तीय सहायता और प्रोत्साहन राशियों का भुगतान भी कई लाभार्थियों को नहीं किया गया।
कायाकल्प योजना और गुणवत्ता में गिरावट
रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि:
- कायाकल्प योजना के अंतर्गत प्रमाणन पाने की आकांक्षा रखने वाले संस्थानों की संख्या में कमी आई है।
- राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानकों से प्रमाणित संस्थानों की संख्या में स्थिरता रही, यानी कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई।
इसका मतलब है कि अस्पतालों की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में कार्य संतोषजनक नहीं है।
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की बदहाल स्थिति
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (RBSK) के अंतर्गत मोबाइल स्वास्थ्य टीमें कर्मचारियों की कमी के चलते प्रभावी तरीके से कार्य नहीं कर पा रहीं थीं। कई टीमों के पास आवश्यक दवाइयां, ड्रॉप्स और मलहम तक उपलब्ध नहीं थे, जिससे बच्चों की नियमित स्वास्थ्य जांच पर प्रतिकूल असर पड़ा।
यह स्थिति बाल स्वास्थ्य को लेकर सरकार की संवेदनशीलता की कमी को दर्शाती है। बच्चों के स्वास्थ्य की अनदेखी, भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती है।
कैग की यह रिपोर्ट पंजाब में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली और सरकारी योजनाओं के कमजोर क्रियान्वयन की पोल खोलती है। जहां एक ओर योजनाएं और बजट तैयार होते हैं, वहीं दूसरी ओर प्रभावी अमल की कमी स्वास्थ्य सुविधाओं को आम लोगों तक पहुंचने से रोकती है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार के लिए:
- योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और गति लानी होगी।
- केंद्र से फंड की समय पर प्राप्ति सुनिश्चित करनी होगी।
- सरकारी धन का उपयुक्त उपयोग जरूरी है।
- स्वास्थ्य संस्थानों की गुणवत्ता बढ़ानी होगी।
पंजाब जैसे राज्य में, जहां जनसंख्या घनी और विविध है, स्वास्थ्य सेवाओं का प्रभावी संचालन अत्यंत आवश्यक है। रिपोर्ट सरकार को समय रहते चेतावनी देती है कि अब नीतियों को कागज से ज़मीन पर लाने का वक्त है।