महंगाई में गिरावट से आरबीआई दरों में बड़ी कटौती की तैयारी में, 2026 तक रेपो रेट 5% तक आ सकता है
“भारत में महंगाई दर लगातार घट रही है, और इसका बड़ा असर देश की मौद्रिक नीतियों पर पड़ सकता है। एसबीआई की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, अगर महंगाई की यही रफ्तार बनी रही, तो भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) अगले कुछ वर्षों में ब्याज दरों में भारी कटौती कर सकता है। इस बदलाव का सीधा असर उपभोक्ताओं, निवेशकों और देश की समग्र आर्थिक स्थिति पर होगा।“
मुद्रास्फीति में गिरावट और आरबीआई की रणनीति
आरबीआई रेपो रेट कटौती की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि महंगाई दर कितने समय तक निम्न स्तर पर बनी रहती है। एसबीआई रिसर्च के अनुसार, अगर महंगाई दर तीन महीनों तक 3 प्रतिशत से कम रहती है, तो 2026 तक रेपो रेट में 1.25 से 1.50 प्रतिशत तक की कटौती संभव है।
मार्च 2025 तक महंगाई कई वर्षों के न्यूनतम स्तर पर रही है। यह दर्शाता है कि मौद्रिक नीति में नरमी का रास्ता अब और भी अधिक स्पष्ट हो रहा है।
रेपो रेट में संभावित बदलाव
इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि जून और अगस्त 2025 के दौरान 0.75 प्रतिशत की कटौती हो सकती है, जबकि दूसरी छमाही में और 0.50 प्रतिशत की कमी की उम्मीद की जा रही है।
इसका सीधा परिणाम यह होगा कि मार्च 2026 तक रेपो रेट 5 से 5.25 प्रतिशत के बीच आ सकता है। एसबीआई का मानना है कि 0.25 प्रतिशत की छोटी कटौती की बजाय 0.50 प्रतिशत की बड़ी कटौती ज़्यादा असरदार साबित हो सकती है।
ब्याज दरों में कटौती का इतिहास और वर्तमान परिदृश्य
भारतीय रिज़र्व बैंक ने फरवरी 2025 से रेपो रेट में कटौती शुरू कर दी थी। तब से अब तक 0.50 प्रतिशत की कमी की जा चुकी है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि बैंक जमा दरों में भी एक प्रतिशत तक की कमी देखने को मिल सकती है।
इससे बैंक ऋण सस्ता होगा, जिससे उद्योगों और व्यक्तिगत उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। इससे मांग और खपत में बढ़ोतरी संभव है, जो अर्थव्यवस्था को गति प्रदान कर सकती है।
मौद्रिक नीति में बदलाव का असर घरेलू वित्त पर
घरेलू महंगाई दर वर्तमान में आरबीआई के लक्ष्य 2 से 6 प्रतिशत के बीच बनी हुई है। मार्च तक की रिपोर्ट के अनुसार, औसत महंगाई दर 4.7 प्रतिशत रही है।
इस स्थिरता के चलते आरबीआई को यह अवसर मिल सकता है कि वह अपनी मौद्रिक नीति को और अधिक नरम बनाए, जिससे आर्थिक गतिविधियों को सहारा मिले।
रुपये की स्थिरता और डॉलर पर टैरिफ का प्रभाव
एसबीआई की रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि 2025 तक रुपये की स्थिति डॉलर के मुकाबले 85 से 87 के दायरे में रह सकती है। यह भी एक कारण है कि भारत की मुद्रा स्थिर रह सकती है, जिससे आयात-निर्यात और विदेशी निवेश पर सकारात्मक असर होगा।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि डॉलर पर लगाए गए टैरिफ का घरेलू प्रभाव 2025 में स्पष्ट रूप से देखने को मिलेगा। इसका लाभ रुपये को मिलेगा और मुद्रा बाज़ार में स्थिरता आएगी।
क्या होगा भविष्य में?
अगर महंगाई की दर इसी तरह नियंत्रण में रहती है और वैश्विक आर्थिक स्थितियाँ अनुकूल बनी रहती हैं, तो आरबीआई अपने मौद्रिक रुख में और भी नरमी ला सकता है।
इसका उद्देश्य होगा आर्थिक विकास को गति देना, निवेश को बढ़ावा देना और रोजगार के अवसरों का सृजन करना।
महत्वपूर्ण बिंदु संक्षेप में:
- लगातार गिरती महंगाई दर ने आरबीआई को ब्याज दरों में कटौती के लिए प्रेरित किया है।
- मार्च 2026 तक रेपो रेट 5% तक आ सकता है।
- घरेलू जमा दरों में भी 1% की गिरावट संभव है।
- डॉलर के मुकाबले रुपया स्थिर रह सकता है।
- ब्याज दरों में नरमी से उद्योगों और उपभोक्ताओं को मिलेगा लाभ।