भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई का मिलान कोर्ट में संविधान और सामाजिक-आर्थिक न्याय पर भाषण
“भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने आज गुरुवार को मिलान कोर्ट ऑफ अपील में “किसी देश में सामाजिक-आर्थिक न्याय देने में संविधान की भूमिका : भारतीय संविधान के 75 वर्षों से प्राप्त अनुभव” विषय पर अपने संबोधन में भारतीय संविधान की सामाजिक-आर्थिक न्याय में महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारतीय संविधान ने न केवल देशवासियों को राजनीतिक अधिकार दिए, बल्कि समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए सामाजिक और आर्थिक अधिकार भी प्रदान किए हैं।“
भारतीय संविधान: सामाजिक-आर्थिक न्याय का माध्यम
मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि पिछले 75 वर्षों की यह यात्रा एक बड़ी महत्वाकांक्षा और महत्वपूर्ण सफलताओं की कहानी रही है। भारतीय संविधान ने न केवल दृष्टि, उपकरण और नैतिक मार्गदर्शन प्रदान किया, बल्कि यह दिखाया कि कानून कैसे सामाजिक बदलाव का माध्यम, सशक्तिकरण का साधन और कमजोर वर्गों का रक्षक बन सकता है।
उन्होंने कहा कि संविधान की समानता और सामाजिक न्याय के प्रति गहरी प्रतिबद्धता ने अनुसूचित जातियों (SCs), अनुसूचित जनजातियों (STs) और सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षा में आरक्षण जैसी सकारात्मक पहलें शुरू कीं। यह संविधान की सामाजिक न्याय की प्रतिबद्धता का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
संविधान: एक क्रांतिकारी घोषणापत्र
मुख्य न्यायाधीश ने यह भी बताया कि भारतीय संविधान सिर्फ राजनीतिक दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह एक “क्रांतिकारी घोषणापत्र” था, जिसने भारत को उपनिवेशवाद, गरीबी, असमानता और सामाजिक विभाजन से उबरने के लिए एक नई उम्मीद दी। उन्होंने गर्व के साथ कहा कि संविधान निर्माता सामाजिक-आर्थिक न्याय के महत्व को अच्छी तरह से समझते थे और उन्होंने संविधान के प्रावधानों को इसी सोच के साथ तैयार किया था।
भारतीय संविधान का लोकतांत्रिक शासन में योगदान
मुख्य न्यायाधीश गवई ने बताया कि भारतीय संविधान ने लोकतांत्रिक शासन के लिए एक गहन और समावेशी उदाहरण प्रस्तुत किया, जिसने नवोदित देशों को समावेशी और भागीदारी आधारित शासन प्रणाली बनाने की प्रेरणा दी। उन्होंने बताया कि संविधान की कई “डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी” (राज्य के नीति निदेशक तत्व) को संसद और सुप्रीम कोर्ट ने मिलकर मौलिक अधिकारों का हिस्सा बनाकर प्रभावी रूप से लागू किया।
सामाजिक-आर्थिक अधिकारों का मौलिक अधिकारों में रूपांतरण
सुप्रीम कोर्ट ने निरंतर प्रयास किया कि शिक्षा से लेकर आजीविका तक के सामाजिक-आर्थिक अधिकारों को मौलिक अधिकारों में बदला जाए, जिसे संसद ने कानूनों और संशोधनों के माध्यम से लागू किया। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय संविधान लागू होने के तुरंत बाद ही भारतीय संसद ने भूमि सुधार कानून और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण जैसी पहलें शुरू की थीं, जिनका प्रभाव आज भी स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई का यह भाषण भारतीय संविधान की सामाजिक-आर्थिक न्याय के क्षेत्र में भूमिका को रेखांकित करता है और यह दिखाता है कि कैसे भारतीय संविधान ने अपने 75 वर्षों में लोकतांत्रिक शासन, समानता, और सामाजिक न्याय की दिशा में प्रभावी कदम उठाए हैं। यह संविधान की ताकत और इसकी सामर्थ्य को प्रमाणित करता है, जो न केवल सामाजिक न्याय बल्कि आधुनिक भारत के निर्माण में भी सहायक सिद्ध हुआ है।