भुवनेश्वर और लिंगराज मंदिर की ऐतिहासिक विरासत
“भुवनेश्वर, जिसे मंदिरों का शहर कहा जाता है, अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के कारण विशेष स्थान रखता है। भुवनेश्वर नाम की उत्पत्ति भी एक दिलचस्प कहानी से जुड़ी है। कहते हैं कि जहां आज लिंगराज मंदिर स्थित है, वहां भगवान शिव स्वयंभू रूप में प्रकट हुए थे। इस स्थान को पवित्र मानते हुए सातवीं शताब्दी में सोम वंश के राजा जजाति केशरी ने यहाँ लिंगराज मंदिर की स्थापना की। कहा जाता है कि इस क्षेत्र में 700 से अधिक मंदिर हुआ करते थे।“
भुवनेश्वर के नामकरण की पौराणिक कथा
लिंगराज मंदिर एकाम्र क्षेत्र में स्थित सबसे बड़ा मंदिर है, जिसकी परिधि में लगभग 50 छोटे मंदिर हैं, जो माँ पार्वती को समर्पित हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान शिव इस पूरे भुवन के ईश्वर हैं, इसलिए इस स्थान को भुवनेश्वर नाम मिला। इस क्षेत्र को गुप्तकाशी और स्वर्ण आंचल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यहां हजारों शिवलिंग पूजे जाते हैं।
लिंगराज मंदिर: शिव मंदिरों का राजा
लिंगराज मंदिर को उड़ीसा की एक महान धरोहर माना जाता है। यह मंदिर कलिंग वास्तुशैली का अद्भुत उदाहरण है और इसे सर्वश्रेष्ठ शिव मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण लगभग 1000 वर्ष पूर्व राजा यति केसरी, अनंत केसरी और लालतेंदु केसरी के शासनकाल में हुआ था।
लिंगराज मंदिर की स्थापत्य विशेषताएँ
- इस मंदिर का शिखर अमलक पत्थर से सुशोभित है, जिसके ऊपर एक भव्य कलश स्थापित है।
- इस मंदिर की स्थापत्य कला की सूक्ष्म नक्काशी अद्भुत है।
- मंदिर को चार भागों में विभाजित किया गया है:
- श्री मंदिर (गर्भगृह)
- जगमोहन (सभा मंडप)
- नाट्य मंडप (नृत्य सभागार)
- भोग मंडप (प्रसाद कक्ष)
लिंगराज मंदिर के प्रमुख तथ्य
- शिखर की ऊँचाई: लगभग 520 फुट
- चौड़ाई: 464 फुट
- प्राचीर की ऊँचाई: 10 से 20 फीट
- मुख्य द्वार: सिंह द्वार (पूर्व दिशा में)
- अन्य द्वार: उत्तर, दक्षिण और पश्चिम में
- धार्मिक नियम: सनातन धर्मियों के अलावा अन्य किसी धर्म के व्यक्ति का मंदिर में प्रवेश निषेध है। लेकिन मंदिर दर्शन के लिए उत्तर द्वार के पास एक ऊँचा मचान बनाया गया है, जहां से लोग इसे देख सकते हैं।
मंदिर परिसर में विराजमान देवी-देवता
लिंगराज मंदिर के चारों ओर स्थापित अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ अद्भुत हैं:
- दक्षिण दिशा: श्री गणेश
- पश्चिम दिशा: कार्तिकेय
- उत्तर दिशा: माता पार्वती
इन मूर्तियों में अद्भुत नक्काशी की गई है, जो इनकी जीवंतता को दर्शाती है। इसके अलावा, मंदिर परिसर में रामायण, महाभारत, शिव विवाह, शिव पूजा और अन्य ऐतिहासिक घटनाओं को शिल्पियों ने संजीव रूप में उकेरा है।
लिंगराज मंदिर का आध्यात्मिक महत्व
लिंगराज मंदिर के प्रांगण में कई छोटे-बड़े मंदिर हैं, जिनमें श्री गणेश, नरसिंह, सावित्री, बैजनाथ, शत्रुघ्न, विश्वकर्मा, शिवकली, एकामेश्वर, माता पार्वती, भुवनेश्वरी, मंगला, लक्ष्मी नारायण, सूर्य नारायण, वृषभ, बड़ा गणेश, कार्तिकेय आदि देवी-देवताओं की प्रतिमाएँ विराजमान हैं।
नंदी के कान में इच्छा मांगने की परंपरा
मान्यता है कि भगवान शिव का वाहन नंदी इस मंदिर में विशाल प्रस्तर प्रतिमा के रूप में विराजमान है। श्रद्धालु नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं, जिससे उनकी इच्छाएँ पूरी होने का विश्वास किया जाता है।
भुवनेश्वर और लिंगराज मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर भी हैं। यह मंदिर वास्तुशैली, नक्काशी और आध्यात्मिकता का एक अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। अगर आप भारतीय संस्कृति और मंदिर वास्तुकला में रुचि रखते हैं, तो लिंगराज मंदिर यात्रा अवश्य करें।