जी20 सत्र में विदेश मंत्री एस. जयशंकर का संबोधन: वैश्विक शांति, सहयोग और कूटनीति पर दिया जोर
“दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में आयोजित जी20 सत्र में भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने वैश्विक शांति, सहयोग और कूटनीति की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने रूस, चीन और अन्य साझेदार देशों के विदेश मंत्रियों से मुलाकात की और अंतरराष्ट्रीय कानून, बहुपक्षीय सहयोग और संवाद को वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए अनिवार्य बताया।“
मुख्य बिंदु:
वैश्विक भू-राजनीतिक चुनौतियों के समाधान पर जोर।
व्यापार, वित्त और डेटा पारदर्शिता के मुद्दों पर चिंता व्यक्त की।
गाजा युद्धविराम और मध्य पूर्व में स्थिरता का समर्थन।
समुद्री सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की भूमिका पर प्रकाश डाला।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की आवश्यकता पर बल।
आर्थिक तनाव और व्यापार नीति पर भारत का दृष्टिकोण
डॉ. जयशंकर ने कोविड-19 के बाद के आर्थिक तनाव, वैश्विक व्यापार नीति और खाद्य सुरक्षा जैसी चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने व्यापार और वित्तीय प्रणाली के हथियारीकरण पर चिंता जताई और डेटा प्रवाह में पारदर्शिता की कमी को एक गंभीर मुद्दा बताया।
उन्होंने उभरती प्रौद्योगिकियों जैसे:
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)
इलेक्ट्रिक वाहन (EV)
अंतरिक्ष अन्वेषण
ड्रोन तकनीक
ग्रीन हाइड्रोजन
इन क्षेत्रों में बढ़ते भू-राजनीतिक प्रभावों पर ध्यान देने की बात कही। उन्होंने इन तकनीकों के विकास को नियंत्रित और संतुलित करने की अपील की, ताकि यह वैश्विक सहयोग और मानव कल्याण के लिए फायदेमंद साबित हो।
मध्य पूर्व संकट और वैश्विक स्थिरता
गाजा युद्धविराम और बंधकों की रिहाई का स्वागत करते हुए डॉ. जयशंकर ने आतंकवाद की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व में स्थिरता के लिए “दो-राज्य समाधान” को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
उन्होंने लेबनान और सीरिया में जारी संघर्षों पर भी चिंता जताई और कहा कि इन क्षेत्रों में स्थिरता लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है।
भारत का रुख:
शांति और कूटनीति को प्राथमिकता देना।
युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में समावेशी समाधान को अपनाना।
मानवीय सहायता और राहत उपायों को बढ़ावा देना।
समुद्री सुरक्षा और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की भूमिका
डॉ. जयशंकर ने भारतीय नौसेना की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि अरब सागर और अदन की खाड़ी में भारत ने समुद्री सुरक्षा बनाए रखने में अहम योगदान दिया है।
उन्होंने यूएनसीएलओएस (1982 संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन) के तहत समुद्री कानूनों के सम्मान की अपील की और कहा कि जबरदस्ती या आक्रामक कार्रवाइयों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
यूक्रेन संकट और कूटनीतिक समाधान
यूक्रेन संघर्ष पर भारत के निरंतर तटस्थ रुख को दोहराते हुए, विदेश मंत्री ने संवाद और कूटनीति के माध्यम से इस संकट के समाधान की अपील की।
उन्होंने कहा कि युद्ध का अंत तभी संभव है जब सभी पक्ष बातचीत के लिए तैयार हों।
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC), सूडान और साहेल क्षेत्र में जारी संघर्षों पर भी ध्यान देने की जरूरत बताई।
भारत का संदेश:
शांति वार्ता को बढ़ावा देना।
मानवीय सहायता उपलब्ध कराना।
राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करना।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग
डॉ. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
भारत लंबे समय से UNSC में स्थायी सदस्यता की मांग कर रहा है।
उन्होंने कहा कि मौजूदा सुरक्षा परिषद कई बार महत्वपूर्ण संकटों का प्रभावी समाधान करने में असमर्थ रही है।
उन्होंने अधिक समावेशी और पारदर्शी वैश्विक शासन की वकालत की।
भारत का सुझाव:
संयुक्त राष्ट्र में लोकतांत्रिक सुधार होने चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय निर्णयों में सभी देशों की भागीदारी होनी चाहिए।
विकासशील देशों के लिए अधिक प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है।
डॉ. एस. जयशंकर ने जी20 सत्र में अंतरराष्ट्रीय कानून, कूटनीति और बहुपक्षीय सहयोग पर जोर दिया।
व्यापार, वित्त और डेटा पारदर्शिता जैसे मुद्दों को वैश्विक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बताया।
गाजा, यूक्रेन और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की भूमिका को स्पष्ट किया।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग दोहराई।